17 June 2013

WTO: देश को लूटने का षड़यंत्र...



ये है कहानी भारत को कैसे गुलाम बनाया जा रहा है ..... इससे निकलना ही एक मात्र रास्ता है बचने का ....

जरूर देखें और फेलायें : 

http://www.youtube.com/watch?v=94uhgFs5cOc



1 Jan 2005 से WTO  देश में लागू  हुआ
15 Dec. 1994 में हस्ताक्षर किये.... इस बीच सब पार्टियों ने शाशन किया... वे भी जिन्होंने आन्दोलन किया इसके खिलाफ.......

यह ऐसा समझोता जिसमे देश के कृषि, उद्योग, व्यापार, शिक्षा, बैंकिंग, बौधिक सम्पदा, बीमा और  चिकित्सा जैसे सवेदनशील शेत्रो पर असर परेगा और पर  रहा हे.. बल्कि  देश की संप्रुभता ही WTO की गिरवी हो रही है,, चर्च की ही नहीं.....


इसे या तो पूरी तरह से स्वीकार या फिर छोर सकते हे...... (ऐसा नहीं की कुछ बिंदु हम मान ले और कुछ नहीं...)


1 और 2 baar discussion सदस्य देशो के बीच मीटिंग हर साल, 126 से ज्यादा सदस्य...

 28 subujects है, जो अपने आप में अग्रीमेंट हे..

इतिहास:


1930 -- में मंदी आई... उसे दूर करने के लिए World War II (1939-1945) हुआ,  West countries की मान्यता हे की ज्यादा मंदी हुयी तो युद्ध करो... हथियार बढ़ेंगे... पैसा आएगा... क्यों? क्योकि उनका (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, गेरमन्य) मुख्य business हथियार बनाना है और इससे 10 तरह के और उद्योग जुड़े हे...         


1945 UNO बना की अब युद्ध न हो.. लेकिन 325 युद्ध हुए.....

अर्थव्यस्था सुधारने के लिए World बैंक, IMF बने.... पर असल में यह सब दुसरे देशो को गुलाम बनाने के ही नए हथियार थे...

दुसरे विश्व युद्ध में यूरोपीय देश की तबाही ज्यादा हुई, इसलिए वर्ल्ड बैंक ने कम इंटेरेस्ट पे इनको लोन दिया.... अमेरिका को कम नुक्सान हुआ और उसने ब्रिटेन के उपनिवेशवाद को  ख़तम करके... अपने नए तरह के नए तरीके ढूदे ..... जैसे कानून से, कंपनियों को बढ़ावा दे के.. वर्ल्ड बैंक, और इम्फ बना के.... WTO, ETC.

1948 -- विश्व के व्यपार को व्यस्थित और सरल बनाने के उद्देस्य से General Agreement on Trade & Tariff (GATT)(तटकर एव व्यापर पर सामान्य समझोता) बनाया. 30 Oct. 1947 में हस्ताक्षर  किये... Jan. 1948 में लागू ..                  मुख्य  उदेसय:    टैक्स, कस्टम, आयात करो को सुलझाना..          

  
1948-1986 तक व्यापार अच्छा चला...
चीन ने इसे 53 सालो तक इससे स्वीकार नहीं किया...
 
1980 के आस-पास फिर मंदी हुयी यूरोपे और अमेरिका में.. कई कोम्पनीया  बंद हो गयी........ बेरोज़गारी बढ़ गयी.......

फिर युद्ध हुआ:  इरान-इराक  जो की 8 साल तक चला...

फिर खाड़ी युद्ध हुआ:  अफगानिस्तान ...    तो यूरोपे में हर 30-40 साल में मंदी आती हे.. अब उनको स्थायी इलाज़ चाहिए.....
इसलिए उन्होंने इसका आधार बनाया GATT को....
  
IInd Phase:


1986 उरुग्वे की मीटिंग में GATT के शेत्र को बाधा दिया गया... इसमें 28 विषय और जोड़ दिए गए.....
Till 1986  तक किसी भी देश के आंतरिक सम्प्रोभाता से जुड़े मामले GATT में नहीं थे....   लेकिन 1986 में ये दाल दिए गए... जो की किसी भी देश के लिए खतरनाक हे..

Team Head:  Arthor Dunkel (अमेरिका का था)

1986-1991 -- अमेरिका और यूरोपे के सदस्यों ने यह बिल ड्राफ्ट किया.... और 1991 में विचार के लिए टेबल में रख दिया...    

अफ्रीका, एशियन, लातिन अमेरिकेन -- भारत, ब्राज़ील, मिश्रा, Nigeria, ने इसका खुल के विरोध किया...  क्योकि इसमें ज्यादातर शर्ते अमेरिका और यूरोपे के फायदे के लिए ही थी ...


भारत ने कुछ शर्ते जो गरीब देशो के हित में थी उनको रखने की कोशिश करी पर नाकाम रहे.... इसलिए भारत ने कहा की यह भारतीय हितो में नहीं हे... और इसमें हस्ताक्षर करने से मन कर दिया.....उस समय पुरे देश में इसका विरोश हो रहा था....


परन्तु.......     15 Dec. 1994  को भारत की सरकार ने देश के साथ दोखा करके.. व् देश को अँधेरे में रख के इसमें हस्ताक्षर कर दिए.....   


1991-1994 --- चर्चा के समय वर्ष मतलब 4 साल में संसद में सिर्फ 11 घंटे चर्चा हुयी.....  मतलब इतने बड़े, इतने महतवपूर्ण विषय पे जिसमे की देश की संप्रुभता का सवाल था... जिसमे हमारे किसानो का रोज़ी-रोटी, व्यापारिया का जीवन... सब कुछ.. दाव पे लगा था... उसमे सिर्फ इतने घंटे ही बहस....

थोरा सा बहस बंगाल और पूजब में हुयी.... और थोरा सा अखबारों के माध्यम  से.....

इसके मुख्या तीन शेत्र हे....


I. कृषि:

हर देश अपने-अपने किसानो को और कृषि उत्पादन में तरह-तरह से मदद करती हे.... जैसे:
 न्यूनतम समर्थन मूल्य देना..
रासायनिक खाद/कित्नाशाको को सस्ते दरो पर देना..
कम ब्याज पर लोन देना..
किसी मुसीबत के समय लोन माफ़ करना ..या ब्याज का माफ़ करना...
कम कीमत पे बिजली देना....
विदेशो से उत्पादों पे मात्रात्मक प्रतिबन्ध लगाना ताकि हमारे गृह उद्योग, कृषि को नुक्सान न हो.....

WTO में कृषि में मुख्या रूप से 3 शेत्र हे: 

1. Subsidy                                    2. Market Access             
3. उत्पादों को विदेशो में निर्यात की सहयता (विदेशी सामानों को हमारे यहाँ लाने में sahayata)

According Article 3 : ==>  Domestic Support (घरेलु सहायता) i.e.. Subsidy को लगातार कम करना होगा....

        और हमारी सर्कार ने हस्ताकाक्षर करने से लागो करने तक (1994-2005) 24% सुब्सिद्य कम कर दी थी...    और आने वाले प्रत्येक वर्ष में यह कटोती होते-होते 5% तक रह जायेगी.....
         ==> मतलब भारत की सरकार सिर्फ 5% से ज्यादा subsidy नहीं दे सकती ....  यह अलग-अलग या कुल भी हो सकती हे...

Subsidy:      Direct       Indirect         

   
Direct:  किसान कृषि उत्पादों को बाज़ार में बेचता हे... सर्कार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता हे... भारत में यह अंतर-रास्ट्रीय   बाज़ार के खुले मूल्य से अक्सर अधिक होता हे.....
उदहारण:       2005 में कपास का मूल्य         1500 - 1700 rs. per quintal   ---   अंतर-रास्ट्रीय बाज़ार में... (विदेश में..)   
                                                            2000 - 2500 rs. per quintal   ---   रास्ट्रीय बाज़ार में.. (हमारे देश में...)    

तो direct subsidy का मतलब अंतर-रास्ट्रीय   खुले बाज़ार से अधिक मूल्य पर किसानो की फसल खरीदना हे....


Indirect Subsidy:


1.   Urea, DAP, Phosphate किसानो को कम मूल्य पर मिलता हे....  
उदहारण:           100 kg. cost ==>  980 rs.    
                        किसान को कीमत   560 rs.          इसलिए   indirect subsidy  हुयी....   =    420 rs.

2.  कम कीमत पर बीजली, पानी देना.....   

उदहारण:   औधोगिक बीजली  का रेट:   5-6 rs. प्रति यूनिट  हे....      पर किसानो को दी जाती हे...     2-3 rs प्रति यूनिट......

Market Access:
Article 4
भारत  के   बाजारों   को  खोलना  होगा  विदेशी   उत्पादों  के  लिए …   कोई  प्रतिबन्ध  नहीं ….
अभी  मात्रात्मक  प्रतिबन्ध और  आयात  कर  लगाये  जाते  है  ताकि  हमारा बाज़ार  विदेशी  सामानों  से  पट  न  जाए ….
Article 5.4 
ज्यादा  आयात  कर  नहीं  लगा  सकते ……. WTO लागो  होने  तक  (1994-2005)   आयात  कर  में  35% से  70% तक  कमी  कर  दी  थे … सरकार  ने …..   तो  यह  सरकार  तो   हमारे  लिए  काम  ही  नहीं  कर  रही …
Article 7 & 9:
कृषि  उत्पादों  पर  निर्यात  सुब्सिद्य  में  कटोती  व्  अन्य  व्यपार  विरोधी  subsidy में  भी  कटोती  करनी  होगी …
इससे  हमारा  निर्यात  कम  होगा … हमारे  सामान  कम  बिकेंगे … व्  मेहेंगे   बिकेंगे …. जबकि  विदेशी  सामान  सस्ते  मिलेंगे …. तो  हमारे  गृह  व्यापारियों , गृह  उद्योगों  को   मारने  का  षड़यंत्र  हे  ये  WTO….

चाय , कोफ्फी , कपास , सब्जिया , फल , चावल , गेहू , घी , मेवा ,  आद्दी  आदि  में  व्यापार  घटा  ज्यादा  होगा …   उसको  पूरा  करने  के  लिए  हमारा  देश  और  अधिक  क़र्ज़  लेगा … ज्यादा  टैक्स  जनता  पर  लगाये  जायेंगे ….  जिससे  महंगाई  और  अधिक  बढ़ेगी ….  पैसे  के  कीमत  और  अधिक  गिरेगी ….

निर्यात  फिर  घटेगा … फिर  हम  क़र्ज़  लेंगे …फिर कोम्पनीया बुलाई जायेंगी... उनको खुली छुट मिलेगी... तो  इस  चक्र  में  हम  फसते  गए … गोल -गोल  घूमते  गए ….


II. बौधिक सम्पति अधिकार  समझोता : TRIPS (Trade Related Intellectual Property Rights)


पहले सिर्फ प्रक्रिया पर ही अधिकार लिया जाता था......

और अब WTO के हिसाब से प्रक्रिया और उत्पाद दोनों के लिए PATENT लेना होगा....

अभी तक कृषि और खाद सुरक्षा, जरूरी दवाओ में Patent नहीं दिया जाता था..... पर अब देना होगा....


पटेंट लेने वाली कंपनी ही उन बीजों का उत्पादन, वितरण कर सकता हे....


1970 के हमारे पुराने पटेंट कानून को बदला गया सिर्फ WTO के हिसाब से....

यह पटेंट 20 साल के लिए दिए जायेंगे.... कंपनी मनमाने ढंग से बाज़ार पे अतिक्रमण करेगी... और फिर थोरा सा फ़ॉर्मूला बदल के फिर अगले 20 सालो का पटेंट ले लेगी....

भारत में   32 crore acre   में खेती की जाती हे....    22 क्रोर टन अनाज का उत्पादन होता हे.... हजारो लाखो टन बीज की जरूरत होती हे..... तो अगर किसी कंपनी ने किसी ख़ास बीज का पटेंट करा लिया तो दूसरी कोई कंपनी उसे बना नहीं सकती बेच नहीं सकती... किसान उसे बना नहीं सकते.... उन्हें सिर्फ उसी कंपनी से ही खरीदना होगा....


हमारे यहाँ गाय का दूध, जमीन ही सम्पति हे....    जानकारी, ज्ञान को दो या दो से अधिक लोग उपयोग कर सकते हे...... हमारे यहाँ बोला जाता हे... की ज्ञान बाटने से ही बढ़ता हे.....ज्ञान को लोगो के साथ नहीं जोड़ा गया.....  कभी लाभ के लिए नहीं माना गया....  पर इन विदेशियों ने इसपर भी अधिकार ज़माना शुरू कर दिया.... हमारे नीम, हल्दी चन्दन और कई चीजों का पटेंट कर लिया हे....



III.   सेवा शेत्र:  


बैंक, बीमा, परिवहन, दूरसंचार, मीडिया,  ADD,  स्वस्थ्य, शिक्षा.....इसमें शामिल किया गया.....
Article 2 :  सरकारी और सैनिक को छोर के सभी शेत्रो को विदेशो के लिए खोलना होगा.....
Switzerland का 90%   income इसी शेत्र से आता हे.....
  जेर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, america  का  2/3 से ज्यादा रोजगार इसी शेत्र में हे....

कृषि, उद्योग और सेवा शेत्र       अगर इन तीनो पे कब्ज़ा कर लिया तो किसी भी देश का कोई भी दूसरा शेत्र आसानी से नियन्त्र में आ जायेंगे........


WTO  के समझोते के रास्ट्रीय अर्थव्यस्थाओ और प्रथिक्मिताओ का कोई महत्व नही रह जाता...

क्योकि Article 16 para 4:  सदस्य देशो को समझोते के अनुरूप अपने नियम कानून बदलने होंगे...
हमारी संप्रभु संसद की क्या हैसियत रहेगी... सिर्फ  clerk की ही रहेगी....

राज्यों के शेत्र:  :::==>         कृषि,    कृषि    पर subsidy ,      गरीबो को सस्ता अनाज,  सेवा शेत्र,    शिक्षा,  सफाई   और  उद्योग.

सविंधान का मूल सिधांत  हे.....:   बिना राज्यों की सहमति  के उनके  अधिकारों में कोई कटोती नहीं की जा सकती.... इसके लिए सविंधान में राज्य सूचि दे राखी हे..
सविंधान के  Article 249 :   राज्यों से 2/3 बहुमत से पास करा के ही कोई केंद्र राज्यों के लिए कानून बना सकता हे....
Article 252   :
राज्यों की permission ले  के ही उनके लिए कानून बना सकते हे.... 

पर केंद्र ने बिना पूछे इसमें हस्ताक्षर किये.......   आखिर यह किसके कहने पे किया.... किसके लिए किया.... इसके फेलाने की बहुत जरूरत हे......



विकसित देशो के 10 बांको के पास दुनिया की  2/3  पूजी हे.....

जापान के 3 बेंको के पास भारत के GDP से 3 गुना ज्यादा पूजी हे....

 
 1980 में अमेरिका pressure फॉर Liberalisation शुरू हुआ.... अफ्रीकी देशो में विदेशी सामान भर गए,,  निगेरिया, सोमालिया, इथोपिया....आदि देशो में उनका सामान बिकना बंद हो गया.... उसके बाद बहार का सामान महंगा हो गया... फिर वह भुकमरी की समस्या विकराल रूप में पैदा हुई...
 बीच में  1983 में Nigeria ने अमेरिका गेहू पर प्रतिबन्ध लगा दिया... Nigeria के किसानो के कसाबा, ज्वर, बाजरा का उत्पादन बढाया.... तो अमेरिकी कंपनी Kargil ने Nigeria govt. पे pressure बढाया.....nigeria  का कपड़ा अमेरिका में बंद करके.....  तो उसके बाद Nigeria ने फिर अपने बाज़ार अमेरिकी कोम्पनीयू के लिए खोल दिए....   

1950 में Liberalisation शुरू हुआ अमेरिका में.....

1950-1960 तक अमेरिका में   30% तक छोटे छोटे किसान समाप्त हो गए...
1960-1970   तक 26% और कम हुए....
1970-1995   तक 10% हे रह गए...
2005   me     3%-4%   ही रह गए...      
बड़ी बड़ी जजीने किसी एक बड़े आदमी या फिर कम्पनीयों के पास चली गयी....

मतलब   50 - 55  सालो   में   96%  किसान   समाप्त   हो   गए.....
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GATT से पहले भारत में बीजों का उत्पादन पब्लिक सेक्टर की कम्पनीय हे करती थी..  या फिर छोटे छोटे हिस्सों में कुछ कम्पनीय बनती थी... और यह दूसरी कम्पनीय द्वारा बनाई हुई बीजों का उत्पादन करने के लिए भी आज़ाद थी.... किसान भी खुद बना सकते थे... और बेच सकते थे..... परुन्तु....GATT से यह सब बंद हो गया.....

उदहारण:   चावल के फसल में  अगर  'blast '  नामक रोग हो गया... और किसी कंपनी ने ऐसा बीज बनाया जो 'ब्लास्ट'   रोग से free हो तो कोई दूसरी कोम्पन्यी या संगठन यह बीज नहीं बना सकती या बेच सकती...... इस प्रकार यह उस कंपनी की एकाधिकार हो गया....

तो यह समझोता पूर्ण रूप से देश को गुलाम बनाने.. व् विदेशी कोम्पनीएयो के हाथो में बेचने... व् हमारे गृह उद्योगों को ख़तम करने के लिए ही हे..... चाहे कोई भी सरकार आये... इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. ..हम युही धीरे धीरे गुलामी की और ही बढ़ रहे हे......   यह सिलसिला तब जारी रहेगा जब तक हम इस WTO से बहार नहीं आएगा....  












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